‘द वायर’ की सीनियर एडिटर आरफ़ा खानम शेरवानी की एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल है. ये क्लिप अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में उनके एक भाषण की है जो उन्होने नए नागरिकता कानून के विरोध के संदर्भ में दिया था.23 मिनट के इस पूरे भाषण में से एक क्लिप को निकाल कर उसे गलत संदर्भ में वायरल किया जा रहा है. बीजेपी का दावा है कि आरफ़ा भारत में इसलामिक सोसायटी के निर्माण का आवाहन कर रहीं हैं. 42 सेकेंड की इस क्लिप में आरफ़ा को कहते सुना जा सकता है ”यहां पर एक आम राय हो कम से कम जितने लोग यहां बैठे हैं उनके बीच कि जब तक हम एक आइडियल सोसायटी ना बन जाएं जहां हमारी मज़हबी पहचानों..हमारी मज़हबी जो बिलीफ हैं..जो हमारे नारे हैं.उनकों लेकर एक तरह का एक्सेप्टेंस पैदा हो तब तक हम एक इन्क्लूसिव प्रोटेस्ट करें..और ये प्रोटेस्ट भी हमको उसी सोसायटी की तरफ ले जा रहे हैं जहां हम सबको शामिल करेंगे. तो हम जो हमारी आइडियोलॉजी है उससे कॉम्प्रोमाइज नहीं कर रहे हैं. फिर से आइ वॉंन्ट टु रिटरेट..यहां हम अपनी आइडियोलॉजी से कंप्रोमाइज नहीं कर रहे हैं अपनी स्ट्रेटजी बदल रहे है.”
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने इस वीडियो क्लिप को पोस्ट करते हए दावा किया आरफ़ा ने अपने भाषण में कहा कि हिन्दुओं की ज़रूरत तब तक है जब तक इस्लामिक सोसायटी का निर्माण नहीं हो जाता.
फिल्मकार और दक्षिणपंथी समर्थक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने इस वीडियो को शेयर किया औऱ दावा किया ‘’शाहीन बाग की रणनीतिकार आरफा बताती हैं कि कैसे inclusive यानि ”सबको शामिल करना” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके भारत में आइडियल इस्लामिक सोसायटी की स्थापना करनी है.
आरफा के 23 मिनट लंबे भाषण में से इस क्लिप को निकालकर एक विशेष नरेटिव देने की कोशिश की गई है. इनफोसिस के पूर्व सीएफओ मोहनदास पई,तारेक फतह, शेफाली वैद्या और कर्नाटक बीजेपी के ट्विटर हैंडल से भी इसे शेयर किया गया है.
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फैक्ट चेक
आरफ़ा के पूरे भाषण का हमने एनालिसिस किया. ‘द वायर’ ने इसे अपनी वेबसाइट पर अपलोड किया है. जिसका टाइटल है ‘ CAA विरोधी अभियान की भाषा मुस्लिम नहीं सेक्युलर होनी चाहिए.’ ये भाषण उन्होने नए नागरिकता कानून का प्रोटेस्ट करने वाले स्टूडेंटस पर केंद्रित करते हुए दिया. भाषण में उन्होने बताया कि ये प्रोटेस्ट मुसलमानों का नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति का है जो देश के संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था में आस्था रखता है. धार्मिक नारों से इसकी पहचान नहीं होनी चाहिए. देश के नागरिक के रुप में सबको साथ लेकर हमे इसे आगे ले जाना चाहिए. जो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल है वो इस पूरे भाषण के 17.15 मिनट पर है. इस क्लिप को अगर आप ध्यान से सुने तो उसमें कहीं भी इस्लामिक सोसायटी बनाने की बात उन्होने नहीं की है बल्कि धार्मिक नारों से निकलकर धर्मनिरपेक्षता को अपनाकर आगे बढ़ने की बात की है. वायरल वीडियो क्लिप में एक वाक्य है जिसमें वो कह रहीं हैं ‘यहां हम अपनी आइडियोलॉजी से कॉम्प्रोमाइज नहीं कर रहे हैं अपनी स्ट्रेटजी बदल रहे है.’ जिसका मतलब है कि हमारी रणनीति होनी चाहिए कि हम धार्मिक नारों को छोड़कर धर्म निरपेक्षता को अपनाएं. इस पूरे भाषण को आप यहां सुन सकते हैं.
निष्कर्ष
आरफा का ये पूरा भाषण नए नागरिकता कानून के विरोध को एक संवैधानिक और लोकतांत्रिक मर्यादाओं के संदर्भ में दिया गया है. इसमें उन्होने कहीं भी हिन्दुओं का इस्तेमाल करके इस्लामिक सोसायटी बनाने की बात नहीं कही और ना ही उनके शब्दों से ये ज़ाहिर होता है. बल्कि मुसलमानों को इस मूवमेंट को आगे बढ़ाने के लिए धार्मिक पहचान का इस्तेमाल छोड़कर सभी को साथ लेकर चलने की रणनीति बनाने की अपील की है. साथ ही उस आइडियल सोसायटी के निर्माण की बात की है जिसमें मुसलमानों की धार्मिक पहचान को सहमति मिले.
दावा- आरफा खानम शेरवानी ने अपने भाषण में हिन्दुओं को इस्तेमाल करके इस्लामिक सोसायटी के निर्माण की अपील की
दावा करने वाले- बीजेपी, बीजेपी समर्थक
सच-दावा गुमराह करने वाला है
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