योग गुरू बाबा रामदेव की कोरोना की आयुर्वेदिक दवा कोरोनिल के प्रचार प्रसार पर रोक लगने के बाद से सोशल मीडिया पर जबरदस्त हंगामा हो रहा है. रामदेव के समर्थन में कई झूठी खबरें सोशल मीडिया पर फैलायी जा रही हैं. एक दावा किया जा रहा है कि रामदेव की दावा का अप्रूवल देने वाला पैनल मुस्लिम था इसलिए उनकी दवा को अनुमति नहीं दी गई.दावा करने वालों ने इस पैनल में शामिल लोगों के कथित नाम तक जारी कर दिए. दावे में कहा गया ‘’आयुष मंत्रालय में दवाईयों पर रिसर्च और अप्रूवल देने वाले साइंटिफिक पैनल के टॉप 6 साइंटिस्टों का नाम पढ़िए •असीम खान •मुनावर काजमी •खादीरुन निशा •मकबूल अहमद खान •आसिया खानुम •शगुफ्ता परवीन बाकी समझ जाईये की रामदेव के कोरोनिल दवा पर रोक क्यों लगी थी, यही है सिस्टम जिहाद.?’’

इस तरह के तमाम दावे ट्विटर पर किए गये.

फेसबुक पर भी  इसी दावे के साथ रामदेव के समर्थन में ये वायरल हुआ

पिछले दिनों एक प्रेस कांफ्रेंस में बाबा रामदेव ने एलान किया कि दिव्य फार्मेसी और पंतजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने मिलकर कोरोना के इलाज की दवा बना ली है. उनके साथ पतंजलि आयूर्वेद के चेयरमैन आचार्य बालकृष्ण भी थे. उन्होने दावा किया कि दवा 100 फीसदी कारगर है. और इसके ट्रायल की सारी सरकारी प्रकिया पूरी कर ली गई हैं. आयुष मंत्रालय ने इसकी इजाजत भी दे दी है. उन्होने यहां तक दावा किया कि कोरोना के मरीज को एलोपैथिक दवाई खाने की जरूरत नहीं है.

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फैक्ट चेक

वायरल दावे की जांच के लिए हम आयुष मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर गए. मंत्रालय के आयुर्वेद के सेक्शन में हमने इन नामों को ढूढ़ा तो हमे कोई सफलता नहीं मिली. फिर हम साइट के यूनानी सेक्शन में गए तो हमे वहां कई तरह की कमेटियों के डिटेल्स दिखाई दिए . इसी में एक जगह हमें साइंटिफिक पर्सनल नामका एक सेक्शन दिखाई दिया. वहां क्लिक करने पर हमे एक लिस्ट मिली जिसमें काफी अधिकारियों के नाम लिखे थे. लिस्ट की शुरुआत में ही एक से 6 नाम वही थे जो सोशल मीडिया पर वायरल हैं. इसे आप यहां देख सकते हैं. नीचे इन नामों का स्क्रीन शॉट दिया गया है.

यानि ये सभी लोग आयुष मंत्रालय की यूनानी चिकित्सा पद्धति के विभाग में अधिकारी हैं. साफ है कि आर्युवेद की दवा के अप्रूवल में इनका कोई योगदान नहीं हो सकता है.भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने भी इस दावे को फेक बताया है.

कोरोना के इलाज की दुनिया भर में अभी तक कोई दवा नहीं बनी है. आयुष मंत्रालय के उत्तराखंड शाखा के लाइसेंसिंग अधिकारी ने भी इस बात से तुरंत इंकार किया था कि उनकी तरफ से कोरोना की दवा का लाइसेंस दिव्य फार्मेसी को दिया गया है.

निष्कर्ष

सोशल मीडिया पर वायरल दावा पूरी तरह से गलत है. जिन मुस्लिम वैज्ञानिकों के नामों का दवा के अप्रूवल में शामिल होने का दावा किया जा रहा है वो झूठा है. सभी नाम युनानी चिकित्सा पद्धति विभाग से संबधित हैं.

दावा- आयुष मंत्रालय के दवा अप्रूव करने वाले पैनल में सभी साइंटिस्ट मुस्लिम थे इसलिए बाबा रामदेव की कोराना की दवा को रिजेक्ट कर दिया गया

दावा करने वाले- सोशल मीडिया यूजर

सच- दावा मनगढ़ंत और झूठा है

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